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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/11/5
Subject: [HamareSaiBaba] shirdi sai baba teachings
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>
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Date: 2012/11/5
Subject: [HamareSaiBaba] shirdi sai baba teachings
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एक दिन बाबा कफ से अधिक पीड़ित थे । बाबा के एक भक्त लक्ष्मीचंद को विचार आया कि इस कफ का कारण शायद किसी की नजर लगी हो। दूसरे दिन प्रातःकाल जब बाबा मस्जिद को गये तो शामा से कहने लगे, "कल जो मुझे कफ से पीड़ा हो रही थी, उसका मुख्य कराण किसी की कुदृष्टि ही है । मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि किसी की नजर लग गई है, इसलिये यह पीड़ा मुझे हुई है।" लक्ष्मीचन्द के मन में जो विचार उठ रहे थे, वही बाबा ने भी कह दिये । बाबा की सर्वज्ञता के अनेक प्रमाण तथा भक्तों के प्रति उनका स्नेह देखकर लक्ष्मीचंद बाबा के चरणों पर गिर पड़े और कहने लगे कि "आपके प्रिय दर्शन से मेरे चित्त को बड़ी प्रसन्नता हुई है। मेरा मन-मधुप आपके चरण कमल और भजनों में ही लगा रहे। आपके अतिरिक्त भी अन्य कोई ईश्वर है, इसका मुझे ज्ञान नहीं । मुझ पर आप सदा दया और स्नेह करें और अपने चरणों के दीन दास की रक्षा कर उसका कल्याण करें । आपके भवभयनाशक चरणों का स्मरण करते हुये मेरा जीवन आनन्द से व्यतीत हो जाये, ऐसी मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है।"
बाबा से आशीर्वाद तथा उदी लेकर वे मित्र के साथ प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर मार्ग में उनकी कीर्ति का गुणगान करते हुए घर वापस लौट आये और सदैव उनके अनन्य भक्त बने रहे । शिरडी जाने वालों के हाथ वे उनको हार, कपूर और दक्षिणा भेजा करते थे ।
(श्री साई सच्चरित्र)
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