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Friday, August 31, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/8/31
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>





साईं जी से प्रार्थना

हे साई सदगुरु । भक्तों के कल्पतरु । हमारी आपसे प्रार्थना है कि आपके अभय चरणों की हमें कभी विस्मृति न हो । आपके श्री चरण कभी भी हमारी दृष्टि से ओझल न हों । हम इस जन्म-मृत्यु के चक्र से संसार में अधिक दुखी है । अब दयाकर इस चक्र से हमारा शीघ्र उद्घार कर दो । हमारी इन्द्रियाँ, जो विषय-पदार्थों की ओर आकर्षित हो रही है, उनकी बाहृ प्रवृत्ति से रक्षा कर, उन्हें अंतर्मुखी बना कर हमें
आत्म-दर्शन के योग्य बना दो । जब तक हमारी इन्द्रयों की बहिमुर्खी प्रवृत्ति और चंचल मन पर अंकुश नहीं है, तब तक आत्मसाक्षात्कार की हमें कोई आशा नहीं है । हमारे पुत्र और मीत्र, कोई भी अन्त में हमारे काम न आयेंगे । हे साई । हमारे तो एकमात्र तुम्हीं हो, जो हमें मोक्ष और आनन्द प्रदान करोगे । हे प्रभु । हमारी तर्कवितर्क तथा अन्य कुप्रवृत्तियों को नष्ट कर दो । हमारी जिहृ सदैव तुम्हारे नामस्मरण का स्वाद लेती रहे । हे साई । हमारे अच्छे बुरे सब प्रकार के विचारों को नष्ट कर दो । प्रभु । कुछ ऐसा कर दो कि जिससे हमें अपने शरीर और गृह में आसक्ति न रहे । हमारा अहंकार सर्वथा निर्मूल हो जाय और हमें एकमात्र तुम्हारे ही नाम की स्मृति बनी रहे तथा शेष सबका विस्मरण हो जाय । हमारे मन की अशान्ति को दूर कर, उसे स्थिर और शान्त करो । हे साई । यदि तुम हमारे हाथ अपने हाथ में ले लोगे तो अज्ञानरुपी रात्रि का आवरण शीघ्र दूर हो जायेगा और हम तुम्हारे ज्ञान-प्रकाश में सुखपूर्वक विचरण करने लगेंगे । यह जो तुम्हारा लीलामृत पान करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ तथा जिसने हमें अखण्ड निद्रा से जागृत कर दिया है, यह तुम्हारी ही कृपा और हमारे गत जन्मों के शुभ कर्मों का ही फल है ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

(श्री साईं  सच्चरित्र  अध्याय 25)



श्री हेमाडपंत कहते है कि, "हे मेरे प्यारे साई! तुम तो दया के सागर हो।" यह तो तुम्हारी ही दया का फल है, जो आज यह "साई सच्चरित्र" भक्तों के समक्ष प्रस्तुत है, अन्यथा मुझमें इतनी योग्यता कहाँ, जो ऐसा कठिन कार्य करने का दुस्साहस भी कर सकता ? जब पूर्ण उत्तरदायित्व साई ने अपने ऊपर ही ले लिया तो हेमाडपंत को तिलमात्र भी भार प्रतीत न हुआ और न ही इसकी उन्हें चिन्ता ही हुई। श्री साई ने इस ग्रन्थ के रुप में उनकी सेवा स्वीकार कर ली। यह केवल उनके पूर्वजन्म के शुभ संस्कारों के कारण ही सम्भव हुआ, जिसके लिये वे अपने को भाग्यशाली और कृतार्थ समझते है।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय-30)

 
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Thursday, August 30, 2012

shivshanker

Fwd: [HamareSaiBaba] "भिक्षावृत्ति की आवश्यकता"



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/8/30
Subject: [HamareSaiBaba] "भिक्षावृत्ति की आवश्यकता"
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>




"भिक्षावृत्ति की आवश्यकता"
अब हम भिक्षावृत्ति के प्रश्न पर विचार करेंगें । संभव है, कुछ लोगों के मन में सन्देह उत्पन्न हो कि जब बाबा इतने श्रेष्ठ पुरुष थे तो फिर उन्होंने आजीवन भिक्षावृत्ति पर ही क्यों निर्वाह किया ।

इस प्रश्न को दो दृष्टिकोण समक्ष रख कर हल किया जा सकता हैं ।
पहला दृष्टिकोण – भिक्षावृत्ति पर निर्वाह करने का कौन अधिकारी है ।
------------------
शास्त्रानुसार वे व्यक्ति, जिन्होंने तीन मुख्य आसक्तियों –
1. कामिनी
2. कांचन और
3. कीर्ति का त्याग कर, आसक्ति-मुक्त हो सन्यास ग्रहण कर लिया हो
– वे ही भिक्षावृत्ति के उपयुक्त अधिकारी है, क्योंकि वे अपने गृह में भोजन तैयार कराने का प्रबन्ध नहीं कर सकते । अतः उन्हें भोजन कराने का भार गृहस्थों पर ही है । श्री साईबाबा न तो गृहस्थ थे और न वानप्रस्थी । वे तो बालब्रहृमचारी थे । उनकी यह दृढ़ भावना थी कि विश्व ही मेरा गृह है । वे तो स्वया ही भगवान् वासुदेव, विश्वपालनकर्ता तथा परब्रहमा थे । अतः वे भिक्षा-उपार्जन के पूर्ण अधिकारी थे ।
दूसरा दृष्टिकोण
-----------------
पंचसूना – (पाँच पाप और उनका प्रायश्चित) – सब को यह ज्ञात है कि भोजन सामग्री या रसोई बनाने के लिये गृहस्थाश्रमियों को पाँच प्रकार की क्रयाएँ करनी पड़ती है –
1. कंडणी (पीसना)
2. पेषणी (दलना)
3. उदकुंभी (बर्तन मलना)
4. मार्जनी (माँजना और धोना)
5. चूली (चूल्हा सुलगाना)
इन क्रियाओं के परिणामस्वरुप अनेक कीटाणुओं और जीवों का नाश होता है और इस प्रकार गृहस्थाश्रमियों को पाप लगता है । इन पापों के प्रायश्चित स्वरुप शास्त्रों ने पाँच प्रकार के याग (यज्ञ) करने की आज्ञा दी है, अर्थात्
1. ब्रहमयज्ञ अर्थात् वेदाध्ययन - ब्रहम को अर्पण करना या वेद का अछ्ययन करना
2. पितृयज्ञ – पूर्वजों को दान ।
3. देवयज्ञ – देवताओं को बलि ।
4. भूतयज्ञ – प्राणियों को दान ।
5. मनुष्य (अतिथि) यज्ञ – मनुष्यों (अतिथियों) को दान ।
यदि ये कर्म विधिपूर्वक शास्त्रानुसार किये जायें तो चित्त शुदृ होकर ज्ञान और आत्मानुभूति की प्राप्ति सुलभ हो जाती हैं । बाबा दृार-दृार जाकर गृहस्थाश्रमियों को इस पवित्र कर्तव्य की स्मृति दिलाते रहते थे और वे लोग अत्यन्त भाग्यशाली थे, जिन्हें घर बैठे ही बाबा से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिल जाता था ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

(श्री साईं सच्चरित्र अध्याय 9)


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Wednesday, August 29, 2012

guruvar

Fwd: [HamareSaiBaba] श्री साईबाबा का ध्यान व स्मरण



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/8/29
Subject: [HamareSaiBaba] श्री साईबाबा का ध्यान व स्मरण
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>






आओ, श्री साईबाबा का ध्यान व स्मरण करें और फिर शिरडी चलकर ध्यानपूर्वक मध्याहृ की आरती के पश्चात का कार्यक्रम देखें। जब आरती समाप्त हो गई, तब श्री साईबाबा ने मस्जिद से बाहर आकर एक किनारे खड़े होकर बड़ी करुणा तथा प्रेम के साथ भक्तों को उदी वितरण की। भक्त गण भी उनके समक्ष खड़े होकर उनकी ओर निहारकर चरण छूते और उदी वितरण का आनंद लेते थे। बाबा दोनों हाथों से भक्तों को उदी देते और अपने हाथ से उनके मस्तक प
र उदी का टीका लगाते थे। बाबा के हृदय में भक्तों के प्रति असीम प्रेम था। वे भक्तों को प्रेम से सम्बोधित करते, "ओ भाऊ ! अब जाओ, भोजन करो। बापू ! तू भी जा और भोजन कर।" इसी प्रकार वे प्रत्येक भक्त से सम्भाषण करते और उन्हें घर लौटाया करते थे। आह! क्या दिन थे वे , जो अस्त हुए तो ऐसे कि फिर इस जीवन में कभी न मिलें! यदि तुम कल्पना करो तो अभी भी उस आनन्द का अनुभव कर सकते हो।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 20)

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Sunday, August 26, 2012

prarthna

हे घट-घट के वासी प्रभु!!हम सब आपके पुत्र-पुत्रियाँ आपके श्रीचरणों में श्रद्धावनत होकर प्रणाम करते हैं..आपकी कृपाओं के लिए,,दयापूर्ण अनुकम्पा के लिए हम ह्रदय से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं..हे दाता,,दीनदयाल!!हम सब की यही कामना है कि हम आपके अच्छे--सच्चे भक्त कहला सकें,,आपके प्यारे पुत्र-पुत्रियाँ बनकर सदा निष्काम भाव से कर्म करते रहें..हमारा मन,,हमारी बुद्धि,,हमारी आत्मा हमेशा पवित्र बनी रहे,,हमारे अंग-प्रत्यंग सदा सेवा में संलग्न रहें..हमारा ह्रदय सदा विशाल हो और आपकी प्रेममय भक्ति,,करुणा और दया से भरा रहे..हे नारायण!! हमारा इस दुनिया में आना सार्थक हो हम अपने हर दिन को शुभ दिन सिद्ध कर पायें,,हर घडी को शुभ घडी बनायें,ऐसा आशीष हमें प्रदान कीजिये..हमारे द्वारा इस जगत में ऐसे कर्म हों कि यह शरीर छूटने के बाद भी उनकी सुगंध संसार में बनी रहे,,ऐसी प्रेरणा हमें प्रदान कीजिये..हे परम दयालुदेव !! सबके ऊपर आपकी कृपा बरस रही है,हम सब पर भी दया कीजिये,,सबके घर-परिवार सुख--समृद्धि से भरपूर हों,,सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हों,,हमारी यह विनती आपके दरबार में स्वीकार हो,,सबका बेडा पार हो.."आचार्य सुधांशु"

Thursday, August 23, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] साई श्रीचरण



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/8/23
Subject: [HamareSaiBaba] साई श्रीचरण
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>, shirdi-sai-baba-sai-satcharitra@googlegroups.com



हे साई। आपके श्रीचरण धन्य है और उनका स्मरण कितना सुखदायी है । आपके भवभयविनाशक स्वरुप का दर्शन भी धन्य है, जिसके फलस्वरुप कर्मबन्धन छिन्नभिन्न हो जाते है । यघपि अब हमें आपके सगुण स्वरुप का दर्शन नहीं हो सकता, फिर भी यदि भक्तगण आपके श्रीचरणों में श्रद्घा रखें तो आप उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव दे दिया करते है। आप एक अज्ञात आकर्षण शक्ति द्घारा निकटस्थ या दूरस्थ भक्तों को अपने समीप खींचकर उन्हें एक दयालु माता की समान हृदय से लगाते है। हे साई। भक्त नहीं जा
नते कि आपका निवास कहाँ है, परन्तु आप इस कुशलता से उन्हें प्रेरित करते है, जिसके परिणामस्वरुप भासित होने लगता है कि आपका अभयहस्त उनके सिर पर है और यह आपकी ही कृपा-दृष्टि का परिणाम है कि उन्हें अज्ञात सहायता सदैव प्राप्त होती रहती है।
(श्री साई सच्चरित्र)


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Sunday, August 19, 2012

पुरुषोत्तम मास

पुरुषोत्तम मास का दूसरा नाम मल मास है | 'मल' कहते हैं पाप को और 'पुरुषोत्तम' नाम है भगवान् का | इसलिए हमें इसका अर्थ यों लगाना चाहिए की पापों को छोडकर भगवान पुरुषोत्तम में प्रेम करें और वो ऐसा करें की इस एक महीने का प्रेम अनंत कालके लिए चिरस्थायी हो जाए | भगवान में प्रेम करना ही तो जीवन का परम-पुरुषार्थ है, इसी केलिए तो हमें दुर्लभ मनुष्य जीवन और सदसद्विवेक प्राप्त हुआ है | हमारे ऋषियों ने पर्वों और शुभ दिनों की रचना कर उस विवेक को निरंतर जागृत रखने के लिए सुलभ साधन बना दिया है, इसपर भी यदि हम ना चेतें तो हमारी बड़ी भूल है |
इस पुरुषोत्तम मास में परमात्मा का प्रेम प्राप्त करनेके लिए यदि सबही नर-नारी निम्नलिखित नियमों को महीनेभर तक सावधानी के साथ पालें तो उन्हें बहुत कुछ लाभ होने की संभावना है |
१. प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें |
२. गीताजी के पुरुषोत्तम-योग नामक १५ वे अध्याय का प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक पाठ करें | श्रीमद भागवत का पाठ करें, सुनें | संस्कृत के श्लोक ना पढ़ सकें तो अर्थों का ही पाठ करलें |
३. स्त्री-पुरुष दोनों एक मतसे महीनेभर तक ब्रह्
मचर्य व्रत का पालन करें | जमीनपर सोवें |
४. प्रतिदिन घंटे भर किसी भी नियत समयपर मौन रहकर अपनी-अपनी रूचि और विश्वास के अनुसार भगवान् का भजन करें |
५. जान-बूझकर झूठ ना बोलें | किसीकी निंदा ना करें |
६. भोजन और वस्त्रों में जहां तक बन सके, पूरी शुद्धि और सादगी बरतें | पत्तेपर भोजन करें, भोजन में हविष्यान्न ही खाएं |
७. माता,पिता,गुरु,स्वामी आदि बड़ों के चरणोंमें प्रतिदिन प्रणाम करें | भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की पूजा करें|
पुरुषोत्तम मास में दान देनेका और त्याग करनेका बड़ा महत्त्व माना गया है, इसलिए जहां तक बन सके, जिसके पास जो चीज़ हो वाही योग्य पात्र के प्रति दान देकर परमात्मा की सेवा करनी चाहिए | त्याग करनेमें तो सबसे पहले पापों का त्याग करना ही जरूरी है | जो भाई या बहन हिम्मत करके कर सकें, वे जीवन भर के लिए झूठ, क्रोध और दूसरों की जान-बूझकर बुराई करना छोड़ दें |
जीवन भर का व्रत लेनेकी हिम्मत ना हो सकें तो जितने अधिक दिनों का ले सकें, उतना ही लें | परन्तु जो भाई-बहन दिलकी कमजोरी, इन्द्रियों की आसक्ति, बुरी संगती अथवा बिगड़ी हुयी आदत के कारण मांस खाते हैं और मदिरा-पान करते हैं तथा पर-स्त्री और पर-पुरुष से अनुचित संबंध रखते हैं, उनसे तो हम हाथ-जोड़कर प्रार्थना करते हैं की वे इन बुराईयोंको सदा के लिए छोडकर दयामय प्रभुसे अब तक की भूल के लिए क्षमा मांगे |
जो भाई-बहन ऊपर लिखे सातों नियम जीवन-भर पाल सकें तो पालने की चेष्ठा करें, कम-से-कम चातुर्मास नहीं तो पुरुषोत्तम महीने भर तक तो जरूर पालें और भविष्य में सदा इसे पालने के लिए अपनेको तैयार करें | अपनी कमजोरी देखकर निराश ना हों, दया के सागर और परम करुनामय भगवान का आश्रय लेनेसे असंभव भी संभव हो जाता है* |
*जितने नियम कम-से-कम पालन कर सकें उतने अवश्य ही पालें | 
Hanuman Prasadji Poddar - Bhaiji

Thursday, August 16, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Vachan



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/8/16
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Vachan
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>, shirdi-sai-baba-sai-satcharitra@googlegroups.com






प्रेम तथा भक्तिपूर्वक भेंट
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Tuesday, August 7, 2012

या देवी सर्व भूतेषु शाब्ती रूपेंण संसिथा ! नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम ;

या देवी सर्व भूतेषु शाब्ती रूपेंण संसिथा !
नमस्तस्ये नमस्तस्ये   नमस्तस्ये नमो नम ;

श्रीमत परं ब्रह्म गुरुं स्मरामि , श्रीमत परं ब्रह्म गुरुं नमामि !

श्रीमत परं ब्रह्म गुरुं स्मरामि ,
श्रीमत परं ब्रह्म गुरुं  नमामि !

Friday, August 3, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/8/3
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
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ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं 
बाबा का रूप हृदय में धारो,
अन्तरमन से साईं पुकारो,
अपने भक्त की सुनकर टेर,
कभी न लगाते साईं देर |
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे 
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JAI MATA DI.

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Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Vachan



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