Guruvar Sudhanshu maharaj duaara kahee gayee prarthanay started by mggarga on 22 /9/2007
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Saturday, September 29, 2012
Friday, September 28, 2012
[HamareSaiBaba] shirdi sai teachings
Maneesh Bagga
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ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं
साईं नाथ को देखिये, कितना हृदय विशाल |
रहते जिसके पास में, कर दें माला माल ||
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे
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श्री साईं-कथा आराधना (भाग-12)
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
संजीवनी समान ऊदी देते साईंनाथ
माथे पे सबके लगा दुआ देते साईंनाथ
ऊदी ने ऐसे-ऐसे चमत्कार दिखाए
जैसे साईं से सारा जग जीवन है पाए
जब एक बार मैना की प्रसव-पीड़ा बढ़ गयी
तब बाबा की ऊदी उसकी रक्षक बन गयी
स्वयं साईं ही गाड़ी ले जामनेर थे आए
पर अपनी इस लीला को थे सबसे छुपाये
ऊदी का घोल पीने से सब ठीक हो गया
मैना के सुत से हर दिल प्रसन्न हो गया
कोई ना जान सका था प्रभु की ये माया
भक्तों की खातिर बाबा ने हर रूप बनाया
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
मेधा का भ्रम दूर करने की चाह में
सपने में साईं ने उसे त्रिशूल था दिया
शिव चरणों में फिर अपनी प्रीत के कारण
मेधा ने बाबा को शिव-शंकर ही मान लिया
साईं का न कोई रूप था और न कोई अंत
सर्वभूतों में व्याप्त श्री साईं थे अनंत
साईं साईं साईं साईं जिसने जप लिया
भव के सागर से वो तो पार उतर गया
जो भी श्री साईं का नित स्तुति है गाता
बिन मांगे वो सब ही शीघ्र है पाता
मेधा की मौत पे साईं ने शोक जताया
और उसको अपना सच्चा भक्त बताया
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए.......
मद्रासी भजनी मेला
..................
लगभग सन् 1916 में एक मद्रासी भजन मंडली पवित्र काशी की तीर्थयात्रा पर निकली । उस मंडली में एक पुरुष, उनकी स्त्री, पुत्री और साली थी । अभाग्यवश, उनके नाम यहाँ नहीं दिये जा रहे है । मार्ग में कहीं उनको सुनने में आया कि अहमदनगर के कोपरगाँव तालुका के शिरडी ग्राम में श्री साईबाबा नाम के एक महान् सन्त रहते है, जो बहुत दयालु और पहुँचे हुए है । वे उदार हृदय और अहेतुक कृपासिन्धु है । वे प्रतिदिन अपने भक्तों को रुपया बाँटा करते है । यदि कोई कलाकार वह
ाँ जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करता है तो उसे भी पुरस्कार मिलता है । प्रतिदिन दक्षिणा में बाबा के पास बहुत रुपये इकट्ठे हो जाया करते थे । इन रुपयों में से वे नित्य एक रुपया भक्त कोण्डाजी की तीनवर्षीय कन्या अमनी को, किसी को दो रुपये से पाँच रुपये तक, छः रुपये अमनी की माली को और दस से बीस रुपये तक और कभी-कभी पचास रुपये भी अपनी इच्छानुसार अन्य भक्तों को भी दिया करते थे । यह सुनकर मंडली शिरडी आकर रुकी । मंडली बहुत सुन्दर भजन और गायन किया करती थी, परन्तु उनका भीतरी ध्येय तो द्रव्यो
पार्जन ही था । मंडली में तीन व्यक्ति तो बड़े ही लालची थे । केवल प्रधान स्त्री का ही स्वभाव इन लोगों से सर्वथा भिन्न था । उसके हृदय में बाबा के प्रति श्रद्घा और विश्वास देखकर बाबा प्रसन्न हो गये । फिर क्या था । बाबा ने उसे उसके इष्ट के रुप में दर्शन दिये और केवल उसे ही बाबा सीतानाथ के रुप में दिखलाई दिये, जब कि अन्य उपस्थित लोगों को सदैव की भाँति ही । अपने प्रिय इष्ट का दर्शन पाकर वह द्रवित हो गई तथा उसका कंठ रुँध गया और आँखों से अश्रुधारा बहने लगी । तभी प्रेमोन्मत हो वह ताली बजाने लगी । उसको इस प्रकार आनन्दित देख लोगों को कौतूहल तो होने लगा, परन्तु कारण किसी को भी ज्ञात न हो रहा था । दोपहर के पश्चात उसने वह भेद अपने पति से प्रगट किया । बाबा के श्रीरामस्वरुप में उसे कैसे दर्शन हुए इत्यादि उसने सब बताया । पति ने सोचा कि मेरी स्त्री बहुत भोली और भावुक है, अतः इसे राम का दर्शन होना एक मानसिक विकार के अतिरिक्त कुछ नहीं है । उसने ऐसा कहकर उसकी उपेक्षा कर दी कि कहीं यह भी संभव हो सकता है कि केवल तुम्हें ही बाबा राम के रुप में दिखे ओर अन्य लोगों को सदैव की भाँति ही । स्त्री ने कोई प्रतिवाद न किया, क्योंकि उसे राम के दर्शन जिस प्रकार उस समय हुए थे, वैसे ही अब भी हो रहे थे । उसका मन शान्त, स्थिर और संतृप्त हो चुका था ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 29
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Sunday, September 23, 2012
खूबसूरत है वो मुस्कान जो "श्री कृष्ण" को देख कर...
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Saturday, September 22, 2012
Fwd: [GURUVAR KI AMRITVAANI] भगवान् शिव की आराधना,,उपासना कर जीवन का आनंद...
752
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From: Ramesh Kumar Mishra
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Friday, September 21, 2012
Fwd: [HamareSaiBaba] Thirupathi Abhishekam
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From: Maneesh Bagga
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प्रार्थना
भगवान् शिव के शरणागत होकर जीवन जीना शुरू कर दो फिर देखना तरक्की के द्वार अपने आप खुलते जायेंगे..प्रभु से प्रार्थना करो कि हे दीनानाथ!! तू ही मेरा नाथ है,,हर जगह तेरा ही साथ है,,तू ही शक्ति है मेरी,,तू ही भक्ति है मेरी,,तुझे ही पुकारूँ,,तुझे ही ध्याऊँ..दुनिया के आकर्षण फीके पड़ जाएँ बस तेरा ही आकर्षण रह जाये..सुधांशुजी महाराज |
Thursday, September 20, 2012
Tuesday, September 18, 2012
Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/18
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>
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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/18
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>
ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं
जीवन में फिर आपके, ख़ुशी न होगी अस्त |
साईं सेवा प्रण लीजिये, सभी रहोगे मस्त ||
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे
पवित्र ग्रन्थों का प्रदान
......................
गत अध्याय में बाबा की उपदेश-शैली की नवीनता ज्ञात हो चुकी है । इस अध्याय में उसके केवल एक उदाहरण का ही वर्णन करेंगे । भक्तों को जिस ग्रन्थविशेष का पारायण करना होता थे, उसे वे बाबा के कर कमलों में भेंट कर देते थे और यदि बाबा उसे अपने करकमलों से स्पर्श कर लौटा देते तो वे उसे स्वीकार कर लेते थे । उनकी ऐसी भावना हो जाती थी कि ऐसे ग्रन्थ का यदि नित्य पठन किया जायेगा तो बाबा सदैव उनके साथ ही होंगे । एक बार काका महाजनी श्री एकनाथी भाग
वत लेकर शिरडी आये । शामा ने यह ग्रन्थ अध्ययन के लिये उनसे ले लिया और उसे लिये हुए वे मसजिद में पहुँचे । तब बाबा ने ग्रन्थ शामा से ले लिया और उन्होंने उसे स्पर्श कर कुछ विशेष पृष्ठों को देखकर उसे सँभालकर रखने की आज्ञा देकर वापस लौटा दिया । शामा ने उन्हें बताया कि यह ग्रन्थ तो काकासाहेब का है और उन्हें इसे वापस लौटाना है । तब बाबा कहने लगे कि नही, नही, यह ग्रन्थ तो मैं तुम्हें दे रहा हूँ । तुम इसे सावधानी से अपने पास रखो । यह तुम्हें अत्यन्त उपयोगी सिदृ होगा । कुछ दिनों के पश्
चात काका महाजनी पुनः श्रीएकनाथी भागवत की दूसरी प्रति लेकर आये और बाबा के करकमलों में भेंट कर दी, जिसे बाबा ने प्रसाद-स्वरुप लौटाकर उन्हें भी उसे सावधानी से सँभाल कर रखने की आज्ञा दी । साथ ही बाबा ने उन्हें आश्वासन दिया कि यह तुम्हें उत्तम स्थिति में पहुँचाने में सहायक सिदृ होगा । काका ने उन्हें प्रणाम कर उसे स्वीकार कर लिया ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 27)
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Friday, September 14, 2012
prarthana
हे प्रभु हमारा ह्रदय आपके श्री चरणों से जुडे रहें
हे जीवन के आधार। सुख स्वरूप सचिदानंद परमेशवर। समस्त संसार में आपने अपनी कृपाओं को बिखेरा हुआ है। हमारा क्षद्धा भरा प्रणाम आपके श्रीचरणों में स्वीकार हो। हे प्रभु। जब हम अपने अंतर्मन में शान्ति स्थापित करते हैं तब हमारे अन्त: स्थ में आपके आनन्द की तरंगें हिलोरें लेने लगती हैं और हमारा रोम-रोम आनन्द से पुलकित होने लगता है। जिससे हमारा व्यवहार रसपूर्ण और प्रेमपूर्ण हो जाता है। हे प्रभु! हमारा ह्रदय आपसे जुडा रहे, हम पर आपकी कृपा बरसती रहे, हमारा मन आपके श्रेचार्नोनें लगा रहे, यह आशीर्वाद हमें अवश्य दो। ताकि हम पर हर दिन नया उजाला, नई उमंगें, नया उल्लास लेकर जीवन के पथ पर अग्रसर हो सकें! ऐसी हमारे ऊपर कृपा कीजिए। हे दयालु दाता। हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम प्रत्येक दिन को शुभ अवसर बना सकें। प्रत्येक दिन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए कि जिससे हम संघर्ष में विजयी हों। हमारे द्वारा संसार में कुछ भी बुरा न हो, प्रेमपूर्ण वातावरण में श्वास ले सकें तथा प्रेम को संपूर्ण संसार में बाँट सकें। हे प्रभु! हमें यह शुभाशीष दीजिए। यही आपसे हमारी विनती है, यही याचना है। इसे स्वीकार कीजिए।
PP acharya Sudhanshu Ji Maharaj
Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/14
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>
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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/14
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
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ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं
मन्दिर मस्जिद दूर है, सरल जाप साईं नाम |
श्री चरणों में साईं के, बसते चारों धाम ||
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे
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श्री साईं-कथा आराधना
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
हर भाव में हर रूप में पाया उन्हें भगवंत
श्री साईंनाथ अनंत उनकी कथा है अनंत
दत्तात्रेय-जगदीश्वर का रूप थे साईं
श्रद्धा-सबुरी और भक्ति साईं से पाई
सीधा-सादा रूप था श्री साईंनाथ का
जिसने भी देखा वो हो गया साईंनाथ का
दर्शन इनके जो भी एक बार पा गया
भव-बंधन से पल में वो मुक्ति पा गया
साईं की दृष्टि में न कोई ऊंचा न नीचा
हर एक को साईं ने अपने प्रेम से सींचा
शिर्डी नगर को आटे से ऐसे बंधाया
कि हैजे से शिर्डी को एक पल में बचाया
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
बाबा कि लीलाओं को जो भी ध्यान से सुनता
मिलती है उसे मुक्ति, परमधाम है मिलता
रोहिला के कुविचार को जब ख़त्म साईं ने किया
तो जड़ चेतन में खुद होने का भान दे दिया
गौली बुवा की श्रद्धा से साईं विट्ठल भी बने
काका को भी उसी भाव में दर्शन दे दिए
बाबा ने गुरु महिमा को ऐसा मान दे दिया
की गुरु के स्थान को पूजास्थल बना दिया
बाबा ने श्रद्धा का एक चमत्कार दिखाया
दासगणु को निज चरणों में ही प्रयाग दिखाया
यौगिक क्रियाओं का साईं को था अद्भुत ज्ञान
पर इस बात का कभी था ना कोई मान
श्री साईं गाथा सुनिए
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Sunday, September 9, 2012
Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
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Date: 2012/9/8
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Date: 2012/9/8
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ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं
महा भयानक दुःख भरा, मोहरूप भव कूप
बाहं पकड़ काडें बाबा, अपनी दया अनूप
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे
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Saturday, September 8, 2012
Friday, September 7, 2012
हे घट-घट के वासी
हे घट-घट के वासी प्रभु!!हम सब आपके पुत्र-पुत्रियाँ आपके श्रीचरणों में श्रद्धावनत होकर प्रणाम करते हैं..आपकी कृपाओं के लिए,,दयापूर्ण अनुकम्पा के लिए हम ह्रदय से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं..हे दाता,,दीनदयाल!!हम सब की यही कामना है कि हम आपके अच्छे--सच्चे भक्त कहला सकें,,आपके प्यारे पुत्र-पुत्रियाँ बनकर सदा निष्काम भाव से कर्म करते रहें..हमारा मन,,हमारी बुद्धि,,हमारी आत्मा हमेशा पवित्र बनी रहे,,हमारे अंग-प्रत्यंग सदा सेवा में संलग्न रहें..हमारा ह्रदय सदा विशाल हो और आपकी प्रेममय भक्ति,,करुणा और दया से भरा रहे..हे नारायण!! हमारा इस दुनिया में आना सार्थक हो हम अपने हर दिन को शुभ दिन सिद्ध कर पायें,,हर घडी को शुभ घडी बनायें,ऐसा आशीष हमें प्रदान कीजिये..हमारे द्वारा इस जगत में ऐसे कर्म हों कि यह शरीर छूटने के बाद भी उनकी सुगंध संसार में बनी रहे,,ऐसी प्रेरणा हमें प्रदान कीजिये..हे परम दयालुदेव !! सबके ऊपर आपकी कृपा बरस रही है,हम सब पर भी दया कीजिये,,सबके घर-परिवार सुख--समृद्धि से भरपूर हों,,सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हों,,हमारी यह विनती आपके दरबार में स्वीकार हो,,सबका बेडा पार हो.."आचार्य सुधांशु"
Wednesday, September 5, 2012
praarthna
पारा कहूँ या पारसमणि, कुछ सूझता नहीं,
हेरान हूँ की आपकी खीद्ध्मत में क्या कहूँ, तुझे दीप कहूँ या ज्योति, तुझे सीप कहू या मोती, तुझे स्नेह कहूँ या अमृत, तुझे नीर कहूँ या सागर, तुझे सूरज कहूँ या चंदा, तुझे रतन कहूँ या हीरा, तेरा नाम रहेगा रोशन, जग में जब तक है उजियारा | चंदा में भी दाग हैं, पर आप में नही, हीरे में भी खोट हैं , पर आप में नही, आशीष हो गर आपका तो धन्य हो जाऊ जीवन तलक परभु की भक्ति को पा जाऊ यही अभिलाषा यही जीवन की ध्यये है परभु आपकी किरपा की पातर हो जाऊ |
Monday, September 3, 2012
Fwd: [HamareSaiBaba] मन का कार्य
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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/3
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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/3
Subject: [HamareSaiBaba] मन का कार्य
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मन का कार्य विचार करना है। बिना विचार किये वह एक क्षण भी नहीं रह सकता। यदि तुम उसे किसी विषय में लगा दोगे तो वह उसी का चिन्तन करने लगेगा और यदि उसे गुरु को अर्पण कर दोगे तो वह गुरु के सम्बन्ध में ही चिन्तन करता रहेगा। आप लोग बहुत ध्यानपूर्वक साई की महानता और श्रेष्ठता श्रवण कर ही चुके है। ये कथाएँ सांसारिक भय को निर्मूल कर आध्यात्मिक पथ पर आरुढ़ करती हैं। इसलिये इन कथाओं का हमेशा श्रवण और मनन करो तथा आचरण में भी लाओ। सासारिक कार्यों में लगे रहने पर भी अपना चित्त साई और उनकी कथाओं में लगाये रहो। तब तो यह निश्चत है कि वे कृपा अवश्य करेंगे। यह मार्ग अति सरल होने पर भी क्या कारण है कि सब कोई इसका अवलम्बन नहीं करते? कारण केवल यह है कि ईश-कृपा के अभाववश लोगों मे सन्त कथाएँ श्रवण करने की रुचि उत्पन्न नहीं होती।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 10)
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