गुरुदेव के मुखारविंद से......... आत्मा का भोजन है प्रार्थना
भगवान की प्रार्थना बहुत बड़ी शक्ति है, इसलिए नित्य-प्रति परमपिता परमात्मा की प्रार्थना में अवश्य बैठें। प्रार्थना आत्मा का भोजन है। जैसे शरीर के लिए भोजन की आवश्यकता है, ऐसे ही आत्मा के लिए प्रार्थना की आवश्यकता है। इंसान के दिल में जब परमात्मा के लिए तड़प पैदा होती है तो प्रार्थना के शब्द अंदर से निकलते हैं और व्यक्ति भाव में बहकर उस परम के प्रति आभार व्यक्त करता है। प्रार्थना में शब्दों का इतना महत्व नहीं है, जितना ह्रदय की भावना का महत्व है, भगवान तो उनकी प्रार्थना को भी स्वीकार करते हैं जिनकी जुबान ही नहीं है, जो बोलने में असमर्थ हैं, गूंगे हैं। इसलिए जब भी प्रभु को पुकारो तो सच्चे दिल से फरियाद करो, वह सुनेगा जरूर, पर वह परम दयालू वही प्रार्थना कबूल करता है, जो उसके बच्चे के लिए कल्याणकारी होती है। इसलिए अगर आपकी कोई प्रार्थना स्वीकार नहीं हुई तो यही समझे कि वह मेरे लिए शुभ नहीं थी।
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