गुरुवर सुधांशुजी महाराज के प्रवचनांश
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Madan Gopal Garga द्वारा GURU VATIKA SE CHUNE PHOOL-Good thoughts by SUDHANSHUJI Maharaj के लिए 3/27/2010 05:09:00 AM को पोस्ट किया गया
Guruvar Sudhanshu maharaj duaara kahee gayee prarthanay started by mggarga on 22 /9/2007
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"यदि किसी को कुछ दे दिया जाए तो उसे सदा गुप्त ही रहने दो। घर में जब कभी कोई आ जाए तो उसका विधिपूर्वक सत्कार करो। यदि किसी का प्रिय कार्य कर दिया है तो उसके सम्बन्ध में मौन रहो और यदि किसी ने तुम्हारा उपकार किया है तो उसे सबके सामने प्रकट करते रहो।"
परम पूज्य सुधाँशुजी महाराज
If you give something to somebody, let it be a secret forever. When someone comes to your home, welcome him properly. If you do any task which is dear to someone, remain quiet about it. And if someone does something good for you, you must acknowledge that in front of everyone.
"संसार में समय को बहुमूल्य संपदा माना गया है। समय की रफ़्तार इतनी तीव्र है कि पलक झपकते ही आप पिछड़ सकते है। इसलिए अपने जीवन के हर पल को, क्षण को कीमती मानकर उसका सदुपयोग करो। समय को कभी बरबाद मत करना। क्योंकि समय को जो व्यर्थ बिता देते है, समय उनको बरबाद कर देता है।"
परम पूज्य सुधाँशुजी महाराज
Time is the most valuable treasure in the world. Time is also fleeting and can be gone within the blink of an eye. That is why, consider every moment of life precious and make good use of your time. Do not waste time. Because the one who wastes time is ruined by time.
"भविष्य जानने की कोशिश मत करो। भविष्य परमात्मा के हाथ में है, वर्तमान आप के हाथ में है। भूतकाल बीत गया, उस की कोई कीमत नहीं । वर्तमान को अच्छा बना रहे है तो
भविष्य की नींव डाल रहे हैं ।"
परम पूज्य सुधाँशुजी महाराज
Do not try to predict the future. The future is in God's hands. Only the present is in our hands. The past has already happened and there is no value in dwelling on it. If we can better our present then that will be the foundation for a better future.
Translated by Humble Devotee
Praveen Verma
"मनुष्य की प्रत्येक इन्द्रिय का अपना धर्म है । उसे अपने धर्म का पालन करना चाहिये ।
आँख का धर्म है समस्त प्राणियों में ईश्वर का दर्शऩ करें । कान का धर्म है महापुरुषों की अमृतवाणी सुनना, दूसरों की अच्छाइयाँ सुनना। मुख का धर्म है सत्य और प्रिय वचन बोलना । हाथों का धर्म है सत्कर्म करना, सेवा धर्म अपनाना। प्रत्येक मनुष्य का धर्म है कि अपने प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करें।"
परम पूज्य सुधाँशुजी महाराज