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Friday, April 17, 2009

प्रार्थना



हे ब्रह्मज्ञान के प्रकाशपुंज

पुस्तक : संचेतना जुलाई २००७
हे सदगुरूदेवा हे ब्रह्मज्ञान के प्रकाशपुंज। हे सृजनात्मक शक्ति के स्वामी। हम सभी भक्तों का श्रद्धा भरा प्रणाम स्वीकार हो।
हे त्रिगुणातीत आप दयालु हो, परम कृपालु को, धर्म के संवाहक हो, ऋषि -मुनियों की परंपरा के सजीव उदाहरण हो, काल -कालांतर के वृताँतों और अनुभवों की सुखद अनुभूति हो, आपने हमें परिश्रम, पुरूषार्थ , साहस, सहनशक्ति, तन्मयता, स्वावलंबन, नियमितता, व्यवस्था, स्वच्छता, सेवा और सहयोग रूपी अनुपम सीख देकर जो हमारे ऊपर उपकार किया है, इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
हे मानवता के पथ प्रदर्शक। आपकी ज्ञानमयी अमृत वाणी सदैव हमारे अंग संग रहती है। भगवान की स्तुति, प्रार्थना, उपासना में आपका सदज्ञान एवं निर्देशन ही सहायक सिद्ध होता है। भाव में अभाव में, उन्नति-अवनति में और जीवन की सुनसान राहों में आप सखा बनकर हमेशा हमारे साथ रहते हो।आपके आशीष का अमृत सदैव हमें प्राप्त होता रहे, यही हमारी अभिलाषा है।
हे ज्ञान के सागर। आपके ब्रह्मज्ञान की अनुगूँज से अंतर्मन में शान्ति कि उत्पति होती है। तब हारे अन्त:करण में आनन्द की तरंगें हिलोरें लेने लगती हैं और हमारा रोम-रोम आनन्द से पुलकित हो जाता है जिससे हमारा व्यवहार रसपूर्ण तथा प्रेमपूर्ण हो जाता है। हे गुरूवर। हमारा ह्रदय सदैव आपसे जुडा रहे, हम पर आपकी कृपा बरसती रहे और हमारा मै आपके श्रीचरणों में लगा रहे। यही प्रार्थना है, याचना है, स्वीकार कीजिए। हम सबका बेडा पार कीजिए।
गुरू चरणों में समस्त शिष्यों के ह्रदयों की आर्त्त पुकार


संत कबीर दोहे
सब धरती कागद करूं,

लखनी सब बनराय।
सात समुँदर की मसि करूं,
गुरू गुन लिखा न जाए
ते नर अंध है, गुरू को कहते और।
हरी रूठे गुरू ठौर है,
गुरू रूठे नहीं ठौर।।
गुरू बडे गोविन्द ते, मन में देखू विचारी।
हरी सुमिरे सो बार, गुरू सुमिरे सो पार।।


श्री श्रीगुरू बंदना

अखंड मंडलाकार व्याप्त येन चराचर तदंपदं दर्शितम येन तस्मै श्री गुरूवे नम: अज्ञान तिमिरान्धश्य ,ग्यानांजन शलाकया च्क्षूरून्मीलितनं येन तस्मै श्री गुरवे नम;


गुरू महिमा

गुरू गोविन्द दोउ ,खडे काके लागुं पाय।
बलिहारी गुरूदेव की ,जिन गोविन्द दियो दिखाय !!
गुरू बिन ज्ञान न उपजे ,गुरू बिन भक्ति न होय।
गुरू बिन संशय ना मिटे ,गुरू बिन मुक्ति न होय।।
गुरू -धोबी शिष्-कापडा ,साबुन -तिरजनहार।
तुरत -सिला पर धोइये ,निकले रंग अपार।।

पथ प्रदर्शक
पथ प्रदर्शक, जब हो गुरुवर हमारे बढ़े कदम, बस वहीं हमारे ! !
अखंड्मडंलाकारम व्याप्तं येन चराचरम तत्पदम दशिर्तम येन तस्मै श्री गुरवे नम:

गुरू ही सब कुच्छ हैं

ॐ गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु:

गुरूर्देवो महेश्वरा: !
गुरू: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:
गुरूवर के चरणों में कोटी -कोटी प्रणाम

Thursday, April 16, 2009

Shri Maha Ganapathi Sthuthi



  • Shri Maha Ganapathi Sthuthi
    Suklam baratharam vishnum sasivarnam sathurbujam
    Prasanna vadanam dyayeth sarva vignoba santhaye

    Vakra thunda maha kaya soorya koti sama praba
    Nirvignam kurume deva sarva kaaryeshu sarvadha
    Gajananam, Bhootha Ganaathi Sevitham,
    Kavitha Jambu Manasara Bakshitham
    Uma sutham, shoka vinaasa haaranam,
    Namaami Vigneshwara, paada pankajam
    Agajaanana padmaarkam gajanana maharnisam
    Anekadham dham bhakthanam ekadhantham upasmahe
    Mooshika Vahana Modhaga Hasta
    Shyamala Karna Vilambitha Sutra
    Vamana Rupa Maheshwara Putra
    Vigna Vinayaka Pada Namaste